खवातीनों-ओ-हजरात
आदाब अर्ज़ है
पेशाह खिदमत है एक ऐसी बेहतरीन ग़ज़ल
जिसको मेरी उम्र के हर ग़ज़ल फराज को यह ग़ज़ल दिल के काफी करीब होगी
और इसे सुनकर उस हर शक्स की आँखों में इश्क़ का वो ज़लज़ला जो जवानी के दिनों में रहा होगा,
आपे आप आ जाएगा
मूलहीजा फरमाइए हुज़ूर
आदाब अर्ज़ है
पेशाह खिदमत है एक ऐसी बेहतरीन ग़ज़ल
जिसको मेरी उम्र के हर ग़ज़ल फराज को यह ग़ज़ल दिल के काफी करीब होगी
और इसे सुनकर उस हर शक्स की आँखों में इश्क़ का वो ज़लज़ला जो जवानी के दिनों में रहा होगा,
आपे आप आ जाएगा
मूलहीजा फरमाइए हुज़ूर
~ग़ज़ल :~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~कीन सोचों में गुम रहते हो~
पर, मुझे अब, जब भी यह ग़ज़ल सुनाई पढ़ती है, मुझे उस्ताद ग़ुलाम आली, का मुसकुराता चेहरा जहन में अनायास आ जाता है।
ग़ज़ल :~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~कीन सोचों में गुम रहते हो~
शायर : मोहसीन नक़वी
गुलूकार : ग़ुलाम आली / पीनाज मसानी / तृशा बिशवास / दिलराज कौर / के वेणुगोपाल मेनॉन ( VenuG )
मौसिकुई : ग़ुलाम आली
मुलाहिजा फरमाएँ आज शब को यह उम्दा और बेहतरीन ग़ज़ल।
गुलूकार : ग़ुलाम आली / पीनाज मसानी / तृशा बिशवास / दिलराज कौर / के वेणुगोपाल मेनॉन ( VenuG )
मौसिकुई : ग़ुलाम आली
मुलाहिजा फरमाएँ आज शब को यह उम्दा और बेहतरीन ग़ज़ल।